Tuesday, December 20, 2011

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Adam Gondvi ko Shraddhanjali

जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाकिफ हो गई
उसे बेवा की माथे की शिकन तक ले चलो ............
ग़ज़ल की नई परिभाषा देने वाले अदम गोंडवी साहब आज हमारे बीच नहीं है , लेकिन उनकी कलम से निकले हुए अल्फाज आज और आने वाले दिनों में भी हमें एक नई राह दिखाते रहेंगे.....
२५ सालो की मित्रता और साहित्यिक मार्गदर्शन , परिवार के हर शख्स से उनका लगाव उनकी कमी महसूस करता रहेगा.......

"सुरेश मोकलपुरी

Monday, December 19, 2011

मैंने पुछा आखिर हम चोर तो नहीं हमारी तलाशी क्यों ले जा रही है ,
तो दरोगा साहब गुर्राकर बोले की हमारी सरकार भयमुक्त समाज का वादा निभा रहीहै
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इस चुनाव के दौरान

इस चुनाव के दौरान कई सज्जन मेरे पास आये,


मेरा चरण छूकर मुस्कुराये, मैंने सोचा शायद मेरी इज्जत इस दौरान कुछ बढ़ी है ,


उन्होंने कहा भाई साहब मेरा चुनाव निशाँ सीढ़ी है ,


हमें वोट दीजिये जिताइये,


मैंने कहा मुल्क की बची कुची इजजत Aap bhi मिटटी में मिलाईये,


तब तक एक दुसरे सज्जन मेरे पास आये


उन्होंने कहा भाई साहब मेरा चुनाव निशान साईकिल है


मैंने कहा आप क लिए क्या मुश्किल है ,


बाटिये अलगाव का परचम , इसी साईकिल पर बैठकर


उडिय मानवता का मजाक इसी साईकिल पर बैठकर


उन्होंने कहा साला भाभन है , मैंने कहा कोई बात नहीं दोस्त ,


हम कवी है हमारे पास हर fun है ....


तब तक एक तीसरे सज्जन है , उन्होंने कहा भाई साहब


मेरा चुनाव निशाँ कमल है


साथ साथ बजरंग दल है , हम मंदिर वही बनायेंगे


मैंने कहा भाईसाहब हम तो मुसलमान है , हम नमाज पढने कहा जायेंगे


तब तक एक चौथे सज्जन आये, मेरा चरण छूकर मुस्कुराये


उन्होंने कहा भाई साहब मेरा चुनाव निशाँ पंजा है ,


मैंने कहा तमाचे मारो , मनमोहन का सर गंजा है


जितना गोष्त निकाल सकते हो निकले, हम तो गरीब आदमी है साहब


हम पर बुरी नजर मत डालो....................


तब तक एक पांचवे सज्जन आये


उन्होंने कहा जय भीम , मैंने कहा समझ गया आपकी थीम


आपका चुनाव निशाँ जरूर हाथी Hoga


उन्होंने कहा भाईसाहब आप तो काफी समझदार है


मैंने कहा हम तो आपके सगे पत्तीदार है


हाथी हमारा जीवन साथी है ,


Akal se khota , Shareer Se bhaari hai ,


Jaise Rahul gandhi ko jhelna mayavati ki lchaari hai ........






इक्कीसवी सदी आई है ........

हाथों में छाले है , पैरों में बिवाई है
देखना ये है की क्या इनके लिए भी इक्कीसवी सदी आई है ........
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संविधान सिगरेटे है , लोकतंत्र दियासलाई
सत्ता काश और संसद स्ट्रे
नेता पीते है , गुल झाड़ते
स्ट्रे भरता है , और फ़ेंक दिया जाता है
जनता के बीच जो तम्बाकू की फसल उगाता है ...
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लाल किले की प्राचीर से जब मैंने अपनी दृष्टि नीचे दौड़ाई
तो जम्हूरियत की शक्ल एक मरियल गाय सी नजर आयी
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